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देशांतर इस पखवारे कविता

कविताएँ
अन्ना अख्मातोवा

सच्ची कोमलता

सच्ची कोमलता चुप्पी है
और इसे कुछ और नहीं माना जा सकता है
व्यर्थ ही उद्दाम इच्छा से तुम
ढक रहे हो मेरे कंधों को फर से;
व्यर्थ में तुम कोशिश करते हो
पहले प्यार की खूबियों पर यकीन दिलाने की
अर्थ जानती हूँ मगर मैं अच्छी तरह
तुम्हारी निरंतर जलती निगाहों का

प्रस्थान

हालाँकि यह धरती मेरी अपनी नहीं है,
मुझे याद रहेगा इसका अंतर्देशीय समुद्र
और जल जो इतना शीतल है
झक्क सफेद रेत
मानो पुरानी हड्डियाँ हों, हैरानी है देवदार के पेड़
वहाँ सुर्ख लाल होते हैं जहाँ सूरज नीचे आता है

मैं नहीं बता सकती यह हमारा प्यार है
या दिन, जो खत्म हो रहा है

थेबिस में अलेक्जेंडर

मुझे लगता है राजा युवा मगर दुर्दांत था,
जब उसने घोषणा की, 'तुम थेबिस को मिट्टी में मिला दो'
और बूढ़ा प्रमुख इस शहर को गौरवमय मानता था
उसने देखा था वह वक्त जिसके बारे में कवि गाया करते थे
सब कुछ जला डालो! राजा ने एक सूची और बनाई
मीनार, द्वार, मंदिर - संपन्न और पनपते हुए
मगर विचारों में खो गया, और चेहरे पर चमक लाकर कहा,
'तुम बस महाकवि के परिवार के जीवित लोगों के नाम दे दो'

बोरिस पास्तरनाक के लिए

बंद हो गई अनूठी आवाज यहाँ,
झुरमुटों का साथी बिछुड़ गया हमसे हमेशा के लिए
बन गया है वह शाश्वत श्रोता
बारिश में जिसने कई बार गाया था

और आकाश के नीचे उगने वाले सभी फूल,
पनपने लगे - जाती हुई मौत से मिलने के लिए
मगर अचानक उसे शांत व्यक्ति मिल गया और दुखी हो गया -
वह ग्रह, जिसका सादा सा नाम पृथ्वी था

और पुश्किन का निर्वासन

और पुश्किन का निर्वासन, यहीं शुरू हुआ था
और लेरमोंतोव का निष्कासन "रद्द" कर दिया गया
राजमार्ग पर आम घास की खुशबू फैली है
झील के पास, जहाँ विमान और पेड़ों की छायाएँ मंडराती हैं
उस कयामत की घड़ी में शाम होने से पूर्व
बस एक बार मिला संयोग मुझे इसे देखने का
इच्छा से भरी आँखों की तेज रोशनी
तमारा के हमेशा जीवित रहने वाले प्रेमी की

काले लिबास में विधवा

काले लिबास में एक विधवा - रोने लगती है
एक निराशाजनक बादल के साथ
ढाँप देती है सब दिलों को एक निराशा के कोहरे से
जब याद किए जाते हैं उसके पति के शब्द साफ-साफ
उसका ऊँचे स्वर में विलाप बंद नहीं होगा
चलेगा यह रुदन तब तक, जब तक बर्फ के गोले
दुखी और थके लोगों को सुकून नहीं देंगे
पीड़ा और प्रेम की विस्मृति का मोल
हालाँकि जीवन देकर चुकाया गया
इससे ज्यादा क्या चाहा जा सकता था ?


अवतारवाद का समाजशास्त्र और लोकधर्म
चौथीराम यादव

वैदिककाल का सीमांत और उत्तर वैदिककाल का आरंभ भारतीय इतिहास का वह समय है जब आर्यों का पशुचारी जीवन कृषि जीवन में रूपांतरित हो रहा था। कृषि केंद्रित इस नई जीवन पद्धति में इंद्र के वर्चस्व वाली यज्ञ प्रणाली और निरंतर होने वाले युद्ध बहुत महँगे और घातक सिद्ध हो रहे थे; उस स्थिति में तो और भी जब यज्ञों के लिए मवेशी तथा अन्य पशु बिना मूल्य चुकाए ही हथिया लिए जाते थे। जाहिर है कि ऐसे यज्ञ, पशुपालक किसानों के आर्थिक शोषण के जटिल कर्मकांड बन गए थे। सामाजिक जीवन के इस परिवर्तित मोड़ पर किसानों के हित में यज्ञ और इंद्र का विरोध एक ऐतिहासिक अनिवार्यता बन गया था। ऐसे ही समय, यज्ञ और इंद्र का विरोध करने के कारण गोरक्षक कृष्ण ने किसानों का प्रवक्ता बन, जननायक का गौरव अर्जित कर लिया और लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने उसे पूज्य बना दिया। यही कारण है कि इंद्र पूजा को अपदस्थ कर कृष्ण पूजा का प्रचलन आरंभ हुआ। पुराणकाल तक आते आते इंद्र का वर्चस्व टूटने लगा और ऋग्वेद के उपेक्षित देवता विष्णु सहसा महत्वपूर्ण हो उठे। (इसी आलेख से)

सात कहानियाँ
ऋता शुक्ल
प्रतीक्षा
सातवीं बेटी
कदली के फूल
मानकी की पीड़ा
सपना सुदामी का
कासों कहों मैं दरदिया
आयी गवनवा की सारी...

धरोहर
द्विजेश
द्विजेश दर्शन

निबंध
बुद्धिनाथ मिश्र
कन्या है सुहागिन है जगत माता है

आलोचना
रोहिणी अग्रवाल
कबीर का वैचारिक दर्शन

विमर्श

अमरनाथ
दलित विमर्श के अंतर्विरोध

मीडिया
कृपाशंकर चौबे
हिंदी पत्रकारिता को सींचनेवाले बांग्लाभाषी मनीषी

विशेष
अवनीश मिश्र
पैट्रिक मोदियानो : स्मृति का संरक्षक
मो यान के संग लौह दरवाजे के भीतर

बाल साहित्य - कहानी
ज़ाकिर अली रजनीश
सबसे बड़ा पुरस्कार

कविताएँ
सर्वेंद्र विक्रम
शिरीष कुमार मौर्य
प्रभुनारायण पटेल
अरविंद कुमार खेड़े

साँप
अज्ञेय

साँप! तुम सभ्य तो हुए नहीं -
नगर में बसना भी तुम्हें नहीं आया।
एक बात पूछूँ - (उत्तर दोगे?)
तब कैसे सीखा डँसना - विष कहाँ पाया।

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ISSN 2394-6687

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